पवित्र स्वर्ण मंदिर
श्री गुरु अरजन साहिब ने पवित्र सरोवर के बीच एक निम्न सतह पर श्री हरमंदिर साहिब का निर्माण कराया था। अन्य धार्मिक स्थलों के विपरीत, जहां भक्तों को मत्था टेकने के लिए सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं, यहां भक्तों को मत्था टेकने के लिए नीचे उतरना पड़ता है।
भगवान का यह अद्वितीय मंदिर सबसे निचले सतह पर बनाया गया है, क्योंकि यह श्री गुरु नानक साहिब की विनम्रता का साक्षी है। परतख हरि गुरु अरजन साहिब ने इस निम्नतम सतह को चुना था। क्योंकि इस परम पवित्र स्थान पर सच्चे पातशाह श्री गुरु नानक साहिब के आसन को शाश्वत काल के लिए स्थापित किया जाना था।
उस समय सिक्ख संगत श्री हरमंदिर साहिब को आसपास की इमारतों से ऊंचा रखना चाहती थी और संगत ने इस बारे में गुरु जी से खूब विचार-विमर्श भी किया था। लेकिन विनम्रता की प्रतिमूर्ति श्री गुरु अरजन देव साहिब जी की आध्यात्मिक लीलाऐं भी अद्वितीय थीं।
उन्होंने फ़रमाया -
गरीबी गदा हमारी ॥
खंना सगल रेनु छारी ॥
इसु आगै को न टिकै वेकारी ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 628
विनम्रता हमारी गदा है। हमारी तलवार है सबके चरणों की धूल बन जाना। इन शस्त्रों के सामने कोई दुष्ट टिक नहीं सकता।
दासन दास रेणु दासन की जन की टहल कमावउ ॥सरब सूख बडिआई नानक जीवउ मुखहु बुलावउ ॥ |
- इस श्रेष्ठ मंदिर के चार दरवाजे चारों दिशाओं में खुलते हैं।
- इसके दरवाजे सभी धर्मों के अनुयायियों; अमीर-गरीब, उच्च-निम्न, उत्पीड़ित और दलित सभी जातियों के लिए खुले हैं।
- भगवान के इस घर, श्री हरमंदिर साहिब में सभी को आदर-मान मिलता है।
- गरीब, दीन और बेसहारा लोगों को यहां भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं।
सरब धरम महि स्रेसट धरमु ॥हरि को नामु जपि निरमल करमु ॥
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