जहाँगीर का बाबा श्री चंद जी महाराज के दर्शन हेतु आना।
हज़रत मियाँ मीर की बातों का जहाँगीर पर गहरा असर हुआ। उसके मन में विचार आया कि ऐसे महान दरवेश, महान फ़कीर की प्रसन्नता के लिए जाना चाहिए, उनकी रहमत ली जाए। उन्हें प्रसन्न किया जाए। इसके लिए उसने अनेक तरीक़े अपनाए। अपने शाही हाथी और अहिलकार को उन्हें लाने के लिए भेजा। बेमुहताज, बेपरवाह बाबा श्री चंद जी ने न तो हाथी इस्तेमाल किया और न ही वे उसके पास आए।
बाद में जब आए हैं। उन्होंने बादशाह से बात की है, वहाँ अनेक करामातें हुई। गुरुद्वारा बारठ साहिब जब बादशाह के अहिलकार गए, तो वहाँ भी अनेक प्रकार की करामातें हुई। जब दरबार में राजसी सम्मान से अभिवादन किया है। बादशाह ने वचन किए तो उस समय भी अनेक प्रकार की करामातें हुई।
बादशाह ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए एक तरीक़ा अपनाया। कहने लगा-
ग़रीब निवाज़! गुरु नानक पातशाह ने मेरे एक बज़ुर्ग पर बड़ी कृपा की थी, बहुत रहमत की थी। ग़रीब निवाज़! उन्होंने हमें सात मुट्ठी अन्न दिया था। उस कृपा के कारण ही अब तक हमारा जहो-जलाल कायम है। ग़रीब निवाज़! इस समय गुरु नानक पातशाह की गद्दी खाली है। आप उस गद्दी के उत्तराधिकारी हैं। गरीब निवाज़, आप उनके साहिबज़ादे हैं, आप उस गद्दी के हकदार हैं। गरीब निवाज़! उस गद्दी को संभालिए, हम पर दया कीजिए और हमें आशीर्वाद दीजिए।
उस समय, बेमुहताज, बेपरवाह बाबा श्री चंद जी ने फ़रमाया-
देख बादशाह, तुमने गुरु अर्जन पातशाह के साथ जो बर्ताव किया है, यह एक बहुत बड़ा पाप है, वह पाप अक्षम्य है। उसके बाद तुमने एक और बड़ा पाप किया है जो तुमने गुरु नानक पातशाह की गद्दी के असली हकदार गुरु हरगोबिंद साहिब को ग्वालियर के किले में बंद कर दिया है। तुमने बहुत बड़ा पाप किया है। तुम अभी किसी फकीर, दरवेश की दया के लायक नहीं हो।
वह बहुत सोच में पड़ गया। उसी समय अपने अहिलकारों को ग्वालियर भेजा। अहिलकारों ने ग्वालियर जाकर गुरु हरगोबिंद साहिब को बड़े आदर के साथ मुक्त कर दिया।
कई अन्य उपाए सोचता है।
बाबा श्री चंद जी महाराज करतारपुर साहिब में विराजमान थे। उसने आसपास के कई गांवों के पट्टे (ज़मीन के मालिकाना हक़ के कागज़) लिखे, बड़ी धूमधाम से उनके चरणों में पहुंचा और कई गांवों के पट्टे (जैसा उसने सोचा था कि अगर मैं इन्हें उनके चरणों में रखूंगा, तो वह प्रसन्न होंगे और मुझ पर दया करेंगे)। जब उसने कदम्बोशी करने के बाद वह पटे उनके पवित्र चरणों में रखे तो उस समय बाबा श्री चंद जी महाराज जहांगीर की ओर देखते हैं फरमाते हैं-
जहाँगीर, देख तुम यहाँ यह कहने आए हो....
(जहाँगीर कहने लगा)- ग़रीब निवाज़! मैं आपके दर्शन के लिए आया हूँ। आपकी कदमबोशी करने के लिए आया हूँ।
(बाबा श्री चंद जी ने फ़रमाया-)
...लेकिन तुम जिस ध्यान से आए हो, जिस मान (अहंकार) में आए हो, अपने शाही मान (अहंकार) में आए हो। तुम निम्रता और गरीबी में नहीं आए हो, मान रहित होकर नहीं आए हो। तुम्हारा सारा ध्यान इन गाँवों के पट्टों में फँसा हुआ है। तुम गाँवों के पट्टों का ध्यान करके हमें खुश करने आए हो, हमें इन पट्टों की ज़रूरत नहीं है।
कहने लगा-
ग़रीब निवाज़, यह यहाँ की लंगर की सेवा है।
बाबा श्री चंद जी महाराज ने फ़रमाया-
सुन जहाँगीर, तेरा लंगर, दो दिन का लंगर, तेरे अंत के साथ ही समाप्त हो जाएगा। यह करतार (सृष्टिकर्ता) का लंगर है, युगों-युगों तक अटल है, शाश्वत है, सदा चलता रहेगा। इसे तेरे पट्टे की आवश्यकता नहीं है। इसलिए जहाँगीर, यह पट्टा वापस ले जाओ! जब तू इस पट्टे के ध्यान से निकल कर, मान रहित हो कर आएगा तो तुझे हमारे दर्शन का फल मिल जाएगा ।
साध संगत जी, ऐसी ज्ञान की बख्शिश की है, जो विनम्रता का पाठ पढ़ा रहे थे, बता रहे हैं कि गुरु नानक के घर में विनम्रता और गरीबी का क्या मायने (अर्थ) है।
जित्थे वी बाबा श्री चंद जी, मुखों प्रवचन सुना गए ने।
नम्रता ते ग़रीबी दी, मेहरां दा मींह वरसा गए ने।
तूँ निम्रता ते ग़रीबी दा प्रकाश बाबा श्री चंद जी।
तूँ नाम दी वरखा लायी मोहलेधार बाबा श्री चंद जी।

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