सबसे बड़ी करामात

 


एक बार कथन करते हुए बाबा नंद सिंह जी महाराज नम्रता के महत्त्व के बारे में बता रहे थे। किसी ने बीच में से पूछा कि करामात क्या है? 

तो बाबा जी ने फ़रमाया- नम्रता ही सबसे बड़ी करामात है। जितनी अधिक नम्रता होगी उतनी ही बड़ी करामात होगी।

  • रावण के पास बड़ी शक्ति थी, बड़ी करामात थी। वह चारों वेदों का ज्ञाता और तपस्वी था। इतनी शक्ति होते हुए भी उसमें नम्रता और गरीबी (दीनता) नहीं थी तो देखो उसका क्या परिणाम हुआ?
  • हिरण्यकश्यप (प्रहृलाद भगत के पिता) ने कठिन तपस्या की और सारे वर प्राप्त किए। इतनी शक्ति होते हुए भी नम्रता और गरीबी नहीं थी, तो उसका कितना बुरा परिणाम हुआ?
  • औरंगजेब के हाथ में भी बहुत-सी शक्ति थी। वह खुदा की इबादत भी करता था। पर नम्रता और गरीबी न होने के कारण आखिर उसका भी कैसा परिणाम हुआ?
बाबा नरिन्दर सिंह जी
‘मैं और अहं’ (अहंकार) में की गई भक्ति कभी फलित नहीं होती। 
जिस तरह पहाड़ के ऊपर भी पानी है और नीचे भी पानी है, पर पहाड़ के नीचे का पानी गंदला है। जब पहाड़ के ऊपर का पानी नीचे की ओर बहता है तो वह नीचे वाले गंदले पानी को साफ करता जाता है। पर पहाड़ के नीचे का गंदला पानी ऊपर नहीं जा सकता।
इसी तरह इंसान गंदे पानी की तरह नीचे पड़ा हुआ है। सतिगुरु की कृपा, ऊँचे स्थान पर स्थित पानी की तरह है जिस वक्त सतिगुरु की कृपा का निर्मल अमृत, ऊपर वाले निर्मल जल की तरह उस नीचे के गंदले जलाशय में आकर मिलता है तो वह गंदला जल भी निर्मल होना शुरु हो जाता है। अहंकार से भरा जीव नम्रता का स्वरूप धारण करना शुरु कर देता है। जिस प्रकार सतिगुरु की कृपा मिलती जाती है वह निर्मल होता जाता है। जब वह निर्मल बन जाता है (नम्रता में बदल जाता है) तो जिस तरफ से भी निकलता है, प्यासों की प्यास बुझाता जाता है और धरती के भाग्य भी जगाता चला जाता है।
बाबा नरिन्दर सिंह जी

गुरु नानक जी के दर से, मिलती दात ग़रीबी की। लूट लो दात ग़रीबी की।

बाबा जी ने फरमाया- ‘हृदय में धारित गरीबी ही सबसे बड़ी है। इसका दिखावे की नम्रता के साथ कोई संबंध नहीं है।’
अपने हाथ में पूरी ताकत हो, शक्ति हो, फिर दूसरे का कसूर माफ़ कर देना और उसके ऊपर बख़्शिश भी कर देना, सबसे बड़ी नम्रता है।
बाबा नंद सिंह जी महाराज के इस वचन से पता चलता है कि वे जब लार्ड क्राइस्ट के तौर पर धरती पर अवतरित हुए और जब उन्हें क्रास के ऊपर सूली पर चढ़ाया जा रहा था तो उस समय भी वे अपने निरंकार पिता को ही अरदास कर रहे थे कि इनको (अत्याचारियों को) क्षमा कर दो। इनको यह कुछ भी पता नहीं है कि यह क्या कर रहे है?
धन्य-धन्य बाबा नंद सिंह जी महाराज जिन्होंने अपने निंदको, दोष-दर्शकों और अपने से विमुखों का अपराध ही माफ नहीं किया बल्कि ऐसे महापापियों का उद्धार और कल्याण भी किया।

सतिगुरु अंदरहु निरवैरु है सभु देखै ब्रहमु इकु सोइ ॥

सतिगुरु सभना दा भला मनाइदा तिस दा बुरा किउ होइ ॥

सतिगुरु दाता दइआलु है जिस नो दइआ सदा होइ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 302
ब्रहम गिआनी की सभ ऊपरि मइआ ॥
ब्रहम गिआनी ते कछु बुरा न भइआ ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 272

ब्रहम गिआनी कै गरीबी समाहा ॥
ब्रहम गिआनी परउपकार उमाहा ॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 273

गुरु पूरा निरवैरु है निंदक दोखी बेमुख तारे
वार 26 पउड़ी 19 भाई गुरुदास जी

क्या ऐसा महान परोपकारी उद्धारकर्त्ता और कल्याणकारी इस दुनिया में कोई हुआ है?

बाबा नंद सिंह जी महाराज की अरदास (प्रार्थना) कितनी परोपकारी और कल्याणकारी होती थी। उनकी इस अरदास में जीव-जन्तु, पशु-पक्षी, कीट-पतंग और सारी वनस्पति का कल्याण शामिल था।
बाबा नंद सिंह जैसा ऋषि न कोई हुआ है, न कोई होगा।

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।

(Smast Ilahi Jot Baba Nand Singh Ji Maharaj, Part 3)

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