बाल्य-काल की झलकियाँ - 1

 


 
संवत् 1927 के कार्तिक मास की त्रयोदशी (नवम्बर 1872) की प्रातःकाल के तीसरे पहर में पंजाब के लुधियाना जिले की जगराओं तहसील के छोटे से गाँव शेरपुरा में एक दिव्य ज्योति प्रकट हुई।
इस नवजात शिशु के मुख-मंडल पर अद्वितीय चमक थी, असाधारण प्रभामंडल था। इस दिव्य ज्योति ने उस अँधेरे-से कमरे को प्रकाशित कर दिया था। इस अवसर पर उपस्थित दोनों परिचारिकाएँ इस कौतुक को देखकर आश्चर्यचकित रह गईं। यही दोनों इस देव आकृति के प्रथम दर्शन पाने वाली सौभाग्यशाली स्त्रियां थीं। इस बालक के भाग्यशाली पिता का नाम सरदार जयसिंह जी व महिमामयी माता का नाम श्रीमती सदा कौर जी था।
इस पवित्र शिशु के जन्म का, दिव्य आलोक का, समस्त जन ने स्वागत किया। उस समय कौन जानता था कि मनुष्यता और अध्यात्म के इतिहास में यह एक शुभ दिन है और साथ ही वह घर, वह गाँव और वह धरती भी बहुत भाग्यवान हैं, जहाँ इस दिव्यात्मा के पवित्र चरण पड़े हैं।
यही वह शुभ दिन था जिस दिन श्री गुरु नानक साहिब व श्री गुरु ग्रन्थ साहिब के महान् दूत व फकीरों के बादशाह ने इस धरती पर अवतार धारण किया था। जहाँ-जहाँ आप के चरण पड़े, वहाँ-वहाँ आपने श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी की दिव्य सुगंध की धाराएँ बहा दीं। 
विश्व में आज असंख्य लोग इसी दिव्य बालक की, बाबा नंद सिंह जी महाराज के रूप में आराधना और पूजा करते हैं।

गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥

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