बाल्य-काल की झलकियाँ - 2




एक बार की बात है कि एक दिन मुँह अंधेरे, परिवार वालों को मालूम हुआ कि उनका बालक घर से गायब है। उस समय इस बालक की आयु पाँच वर्ष से भी कम थी। गाँव के अंदर आस-पड़ोस में देखने के उपरान्त परिवारजन कुछ बुजुर्गों को साथ ले कर गाँव से बाहर ढूँढने निकल पड़े।  यह बालक आधी रात 12 बजे कुएँ पर स्नान उपरान्त कुएँ की मुंडेर पर समाधि लगा कर प्रभु के चरणों में तल्लीन था। इस पूर्ण एकान्त में चैकड़ी लगाए वह बालक तीन घण्टों से समाधि में लीन था। नींद के एक हल्के से झोंके से यह बालक कुएँ में गिर सकता था। यह विस्मयकारी था कि बालक ने इसी लिए इस स्थान को समाधि के लिए चुना था।
ऐसा प्रतीत होता था, जैसे धु्रव भक्त अपने ऊँचे रूहानी तख्त से उतर कर, फिर भक्ति व घोर तपस्या के लिए एक छोटे बालक का रूप धारण कर के आ गए हों। अन्तर केवल इतना ही था कि अब उसे सारी आयु भक्ति में व्यतीत करनी थी। 
बुजुर्गों ने उसे गहन आनंद और प्रभु-भक्ति में लीन पाया। वे चुपके से उसके पास गए। कहीं यह बालक अचानक गहरे कुएँ में गिर न जाए, इस डर से उन्होंने उस बालक को उठा लिया। जब उस प्रभु-स्वरूप बालक से यह पूछा गया कि उस ने भक्ति करने के लिए कुएँ की मुंडेर को ही क्यों चुना, जिससे नींद आने पर उसके जीवन को खतरा हो सकता था,
तब उस बालक ने उत्तर दिया- 
अगर गुरु नानक साहिब की प्रेम-भक्ति करते हुए समाधि में नींद आ जाए, तब तो इस जीवन की अपेक्षा कुएँ में गिर कर मर जाना ही बेहतर होगा।
इस पवित्र बालक के भीतर प्रभु की भक्ति करने की इतनी अथाह इच्छा व उत्सुकता थी! ये छोटी आयु में रूहानी जागृति के चिन्ह ही थे कि पाँच साल की छोटी आयु में ही इस आध्यात्मिक सिंह में इतनी दृढ़ता और निश्चय का भाव था।

वास्तव में यह आश्चर्य की बात है कि पाँच वर्ष का एक बालक, जिस को कभी किसी साधु-संत या किसी अन्य के पास आध्यात्मिक शिक्षा-दीक्षा नहीं मिली हो, वह रूहानी प्यास को बुझाने के लिए तन-मन को इस प्रकार न्यौछावर कर रहा था। आध्यात्मिक साहित्य में इस प्रकार का कोई अन्य उदाहरण नहीं है। इतनी छोटी आयु में श्री गुरु नानक साहिब के लिए इतनी श्रद्धा का उत्पन्न होना मनुष्य-शक्ति से परे की एक अद्भुत घटना है। बहुत से साधु-संत तो अपने सम्पूर्ण जीवन में प्रभु पर इतना गहरा विश्वास पैदा नहीं कर सके थे। स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था कि कोई दिव्य भक्ति ही इस पवित्र बालक के रूप में प्रकट हो गई थी।

इस प्रकार चैकड़ी लगा कर गहरी समाधि में लीन, अज्ञेय को पाने के निश्चय के साथ ही उन्होंने निद्रा, मृत्यु, सांसारिक आकर्षणों, सुविधाओं व सुखों पर जीत प्राप्त कर ली थी। 
  • आप हँसने-खेलने, खाने जैसे सांसारिक सम्बन्धों व लालचों से बिल्कुल बेखबर थे। 
  • आप किसी से बात भी नहीं करते थे।
  • आप सदैव प्रभु-भक्ति में ही गहरी डुबकी लगाते रहते थे। 
  • कोई सांसारिक वस्तु उन्हें आकर्षित नहीं करती थी। 
ऐसे थे बाबा नंद सिंह जी महाराज। उन की तरह कोई और नहीं हो सकता। 

दिव्य प्रेम का अवतार होने के कारण यह बालक मौत, निद्रा तथा सुख-सुविधाओं से निरपेक्ष रह कर प्रभु के प्रेम-सागर में डुबकियाँ लगा रहा था। इस घटना के उपरान्त उनका परिवार सावधान रहने लगा। परन्तु जब भी वे रात को देखने हेतु उठते, तो इस बालक को उनके आध्यात्मिक उपदेशक बाबा हरनाम सिंह जी महाराज की तरह चारपाई पर बैठे हुए गहरी समाधि में लीन पाते थे।
  • वह अपने जीवन में कभी भी नहीं सोये। 
  • किसी ने उन्हें सोते नहीं देखा था। 
  • उन्होंने बचपन में ही नींद पर काबू पा लिया था। 
हर समय प्रभु-भक्ति में लीन रहने वाले सच्चे ब्रह्मज्ञानी को नींद की कोई इच्छा व आवश्यकता नहीं होती। 
गुरु अर्जुन पातशाह ‘सुखमनी साहिब’ में कहते हैं-
ब्रहम गिआनी सदा सद जागत  
बाबा नंदसिंह जी साहिब जन्म से ब्रह्मज्ञानी व महापुरुष थे। बाबा नंद सिंह जी महाराज सदैव रूहानी आनंद में डुबकियाँ लगाते रहते थे। वे सदा उच्च आध्यात्मिक आनंद पर स्थापित रहते थे। ये तो सांसारिक लोग ही होते हैं, जो अपनी नींद व भूख की संतुष्टि के लिए अमूल्य जीवन गंवा देते हैं।
बचपन की इन अनोखी घटनाओं में श्री गुरु नानक साहिब जी के पुनर्जन्म की इलाही शान झलकती है। इस में आश्चर्य की कोई बात नहीं थी कि श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की इलाही शान की पुरातन पवित्रता व शोभा का यशोगान करने के लिए श्री गुरुनानक साहिब की दिव्य शक्ति बाबा नंद सिंह जी महाराज के रूप में प्रकट हो गई थी।
इस समय इस पवित्र बालक की आध्यात्मिक चमक छुपे रूप में विचरण कर रही थी। यह घटना रूहानी तप-तेज (शोभा) की एक झलकी है, जिसकी अलौकिक शक्ति उन के भाग्यशाली जीवन का निर्माण कर रही थी। महान् उद्देश्य और लक्ष्य बाल्य-काल से ही स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था।
बाबा जी के बचपन के ऊपर लिखी गई घटनाओं से यह भली प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि बाबा नंद सिंह जी साहिब पवित्र योग व वैराग्य की महान् मूर्ति थे। उन के बाद के जीवन की पवित्र घटनाओं से पता चलता है कि उन्होंने ‘त्याग’ सहित सब कुछ छोड़ दिया था। उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन में न तो किसी वस्तु का लालच किया और न ही वे किसी सांसारिक वस्तु पर निर्भर रहे। ऐसा त्याग अपने आप में एक उदाहरण है। आप जन्म से ही त्यागी व प्रभु-प्रेमी सत्पुरुष थे। बाल्यकाल से उनके भीतर एक ही अभिलाषा थी- वह थी अपने प्रिय सतगुरु श्री गुरु नानक देव जी के प्रत्यक्ष दर्शन करने की। वह सांसारिक मोह त्याग कर सिर्फ श्री गुरु नानक साहिब जी की आराधना में दिन व्यतीत कर देते थे। अपने बाल्य-काल से ही उन्होंने  प्रभु गुरु नानक साहिब के प्रति अथाह प्रेम की पवित्र भावना पर सब कुछ न्यौछावर कर दिया था। 
(यह वर्णन हमें भाई रत्न सिंह जी कलेराँ से प्राप्त हुआ है। भाई रत्न सिंह जी हजूर बाबा नंद सिंह जी महाराज के अनन्य श्रद्धालु थे तथा जीवन भर उन की सेवा में उपस्थित रहे।)

एक पूर्ण संत के दो आध्यात्मिक रूहानी नेत्र होते हैं। 

  1. पहला नेत्र पूर्ण त्याग का है, जो हृदय से प्रकट होता है व 
  2. दूसरा प्रभु-प्रीतम के लिए आत्मा से उठी तीव्र पुकार का है। 

-बाबा हरनाम सिंह जी महाराज भुच्चों कलाँ वाले
गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥ 

 

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