बाबा जी के प्रथम दर्शन

Baba Narinder Singh Ji 

यह सन् 1935 की बात है। लुधियाना के  जाने- माने रईस सरदार गुरदियाल सिंह थापर मेरे पिताजी के परम स्नेही थे। पिता जी की आध्यात्मिक प्रवृति से प्रभावित उन्होंने एक दिन पिता जी से बाबा नंद सिंह जी महाराज का जिक्र किया और बताया कि कभी-कभी बाबा जी जब यहां आते हैं तो लुधियाना-जगराँव मार्ग पर उनके बा़ग ‘राम बाग’ में ठहरते हैं।


मेरे पिता जी ने उनसे विनती की कि अगली बार जब बाबा जी का शुभ आगमन हो तो वे उनको अपने साथ ले जाएँ। एक दिन सरदार गुरदियाल सिंह थापर, पिता जी के पास आए और उन्हें बाबा जी के आगमन की सूचना दी। पूज्य पिता जी ने तुरंत फलों से भरे टोकरे प्रसाद के तौर पर साथ लिये और सरदार गुरदियाल सिंह के साथ तत्काल ‘राम बाग’ की ओर रवाना हो गए।
बाग में एक तलैया के निकट बाबा जी समाधि-अवस्था में थे। पवित्र सबद-कीर्तन का प्रवाह जारी था। विशाल संगत बाबा जी की प्रत्यक्ष उपस्थिति की महान कृपा के आनन्द-सरोवर में मग्न थी। पूरा वातावरण दिव्यता से सराबोर था।

आदरणीय पिता जी और सरदार गुरदियाल सिंह जी माथा टेककर बाबाजी के निकट बैठ गए। कुछ देर के बाद बाबा जी ने अपने पवित्र नेत्र खोले और चारों ओर अपनी कृपा दृष्टि डाली। पिताजी पर नजर पड़ते ही उनकी पावन दृष्टि पिताजी पर केन्द्रित हो गई। बाबा जी ने सरदार गुरदयाल सिंह से मेरे पिता जी के बारे में पूछा। उन्होंने विनम्रता और सत्कारपूर्वक पिता जी का परिचय दिया।

तत्पश्चात् बाबा जी ने अपने विशेष विनम्र अन्दाज़ में संगत से विदा माँगी और अन्दर की ओर प्रस्थान किया जहाँ उनके ठहरने का प्रबन्ध किया गया था। सरदार गुरदियाल सिंह के साथ पिता जी भी उनके पीछे अंदर चले गए। बाबा जी एक चारपाई पर विराजमान हो गए और सरदार गुरदियाल सिंह व पिता जी उनके चरणों में बैठ गए।

बाबा नंद सिंह जी महाराज ने एक बार फिर अपनी पवित्र दृष्टि पिताजी पर डाली और एक महान ईश्वरीय संदेश उनको सम्प्रेषित किया जिसे सुपात्र ग्रहणकर्त्ता ही अनुभव करके समझ सकता था। यह अपने प्रीतम को खोजने व पहचानने की एक प्रक्रिया थी।

बाबा जी के पवित्र नेत्र अमृत के सरोवर थे। उनसे अमृत-धारा प्रवाहित हो रही थी, जो पिताजी के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा को निर्मल कर रही थी।

पिताजी उस समय के बहुत से संतो को निकट से जानते थे। परंतु बाबा नंद सिंह जी महाराज से प्रथम भेंट के बाद उन्होंने अनुभव किया कि वे युगों-युगों से केवल बाबा नंद सिंह जी महाराज से ही जुड़े हुए है।

बाबा नंद सिंह जी महाराज की अपार कृपा-अमृत से परिपूर्ण हुए वे घर लौटे। महान बाबा जी के रंग में रंगे पिता जी ने मेरी माताजी और हम सब को प्रसन्नता से बताया-
                उन्होंने निरंकार को ढूँढ लिया है, गुरु नानक को ढूँढ लिया है।

मैंने पिता जी को इतना खु़श पहले कभी नहीं देखा था। उस दिन काफ़ी देर तक वे महान बाबा जी के पवित्र दर्शनों के बारे में बताते रहे। वे बाबा नंद सिंह जी की इलाही शान में वे अपनी सुध-बुध ही भूल गए थे।

मेरी छोटी बहन बीबी भोलाँ रानी पवित्र कीर्तन करते हुए प्यार की मस्त अवस्था में झूमती हुई प्रायः आलाप लिया करती थी-
असी बाबे लब्भ लए जी सारा जग ढूँढ के।
(सारे संसार को परखने के बाद हमने बाबा नंद सिंह जी महाराज को ढूँढ लिया है।)
यह पहला मिलाप एक अद्भुत आध्यात्मिक चमत्कार था। पिता जी ने पहली बार बाबा नंद सिंह जी महाराज के दर्शन किए थे और वह तभी से पूर्ण रूप से बाबा जी के हो चुके थे। उन पर बाबा जी का पूर्ण प्रभाव था।
गुरु नानक दाता बख्श लै।  बाबा नानक बख्श लै॥

Comments

Popular Posts