बाणी गुरु गुरु है बाणी




पोथी परमेसर का थानु ॥
साधसंगि गावहि गुण गोबिंद पूरन ब्रहम गिआनु ॥

श्री गुरु ग्रंथ साहिब अंग 1226

इस अमृतबाणी के विषय में बाबा नंद सिंह साहब किस तरह स्पष्ट कर रहे हैं- 
अमृतबाणी तो पहले से ही निरंकार थी 
अमृतबाणी अब भी निरंकार है 
श्री गुरु नानक देव जी ने अम्रित बाणी के द्वारा ही उपदेश किया। 
वह ज्योति श्री गुरु अगंद देव जी में अवतरित हुई। उपदेश बाणी के द्वारा होता रहा। 
तीसरी पातशाही श्री गुरु अमरदास जी गद्दी पर विराजित हुए, उपदेश उसी तरह जारी रहा। 
इसी तरह श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी गद्दी पर विराजमान हुए, उपदेश बाणी के द्वारा हो रहा है। 
गुरुमुखों के लिए वही गुरु जी बैठे बाणी के द्वारा उपदेश कर रहे हैं। 
मूर्ख व्यक्ति के लिए अंतर है, ज्ञानी के लिए बाणी प्रत्यक्ष गुरु है। 
श्री गुरु ग्रंथ साहिब गद्दी पर विराजमान हैं, उपदेश बाणी के द्वारा हो रहा है। 
गुरुमुखों के लिए कोई अंतर नहीं है 
भिन्नता हमारी दृष्टि में है, हमें अपनी दृष्टि पक्की करनी है।
बाबा नंद सिंह जी महाराज
बाबा नंद सिंह साहिब इस तरह स्पष्ट करते हुए फरमाते हैं-
 श्री गुरु ग्रंथ साहिब...., इस स्वरूप को स्वयं निरंकार ने धारण किया है। 
बाबा नंद सिंह साहिब ने फरमाया-
गुरु नानक पातशाह के चार स्वरूप हैं। 
  • पहला स्वरूप है ‘निरंकार’, 
जोति रूप हरि आपि गुरु नानकु कहायउ।
  • दूसरा स्वरूप वह है जिसमें वे ‘स्वयं प्रकट’ हुए हैं। 
  • उनका तीसरा स्वरूप है बाणी - 
बाणी गुरु गुरु है बाणी
श्री गुरु ग्रंथ साहिब की यह अमृतबाणी गुरु नानक का तीसरा स्वरूप है। 

  •  उनका चौथा स्वरूप है ‘नम्रता और गरीबी’ का। 

पिताजी ने इस विषय में समझाते हुए कहा- 
स्वयं साहिब फरमाते हैं- 
प्रभ जी बसै साध् की रसना 
निश्चित रूप से साध की रसना में ईश्वर का रूप है। पर इसका प्रभाव क्या होता है! इसका प्रभाव यह है कि जो भी व्यक्ति उस महापुरुष की रसना से प्रभु के वचन सुनते हैं उन सुनने वालों को प्रभु की प्राप्ति होती है 
गुर रसना अम्रित बोलदी
यह सारी अमृतवाणी गुरु नानक पातशाह की रसना से ही आई है।
बाबा नंद सिंह साहिब फरमाने लगे- 
श्री गुरु ग्रंथ साहब का एक-एक अक्षर गुरु नानक है।

फिर पिताजी कहने लगे-
अम्रित बाणी गुर की मीठी।। 
गुरमुखि विरलै किनै चखि डीठी।। 
श्री गुरु अमरदास जी
साहिब की रसना से उच्चरित यह वाणी कितनी मधुर है। हरेक व्यक्ति को इस मिठास का पता क्यों नही लगता?
एवडु ऊचा होवै कोइ, तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ
फिर  पिताजी समझाने लगे- 
जिस समय वह गुरुमुख महापुरुष, जिसने इस अमृतवाणी की कमाई की है, जिसने साहिब के साथ प्रेम किया है, जिसके हृदय में स्वयं गुरु नानक पातशाह ने इस अमृतवाणी को समझने की सूझ दी है और जो गुरु नानक की इस अमृतवाणी के रंग में रंगा हुआ है, जब ऐसा महापुरुष संगत के स्तर पर आकर वचन करता है तो कितना आश्चर्यपूर्ण प्रभाव पड़ता है, इस प्रभाव के विषय में पिताजी बता रहे हैं।
बाबा नंद सिंह साहब ने संगत में समझाया है-
अमृतवाणी की कमाई करने वाला जो महापुरुष है और जिसने साहिब की इस अमृतवाणी की कमाई की है, उसके माध्यम से यह समझा जा सकता है कि बाणी को पढ़ना और सुनना आसान है। बाणी पर विचार करना बहुत मुश्किल है। बाणी पर अमल करना तो बहुत ही कठिन है।
बाबा जी फ़रमाते है-
जिस गुरुमुख महापुरुष ने बाणी की कमाई की है उसके मुख से बाणी सुनने वालों को बड़ी ही मधुर लगती है। 
बाबा नंद सिंह साहिब फ़रमाने लगे - 
इसी विधि से बाणी का रहस्य खुलता है। यह समझ में आती है। फिर तीसरा प्रभाव, 
बाबा नंद सिंह साहिब फ़रमाने लगे-
तब यह बाणी हृदय में घर कर जाती है। कलेजे को छलनी कर देती है, यह बाणी पूरा प्रभाव डालती है। 
बाबा नंद सिंह साहिब फ़रमाने लगे-
चौथी प्रभाव यह है, कि इस तरह की कमाई करने वाला महापुरुष जिस समय भी गुरु नानक पातशाह की अमृतबाणी का उल्लेख कर रहा होता है, वही बचन, वही अमृतबाणी भाग्य लगा देती है।
ऐसे वचन करते हुए पिताजी कहने लगे-
इस मिठास की मस्ती, जो कुछ हम ले रहे हैं, इसको समझने की जो भी सूझ-बूझ हमें मिली है और जो कुछ हम पर इसका असर पड़ा है और जो सौभाग्य हमें हासिल हुआ है, यह सारी उपलब्ध्यिाँ हमने बाबा नंद सिंह साहिब के मुखारविंद से सुनकर प्राप्त की हैं। यह सब कुछ उनकी संगत और उनके चरणों में बैठकर प्राप्त किया है।

 

अम्रित बाणी गुर की मीठी ॥
गुरमुखि विरलै किनै चखि डीठी ॥
अंतरि परगासु महा रसु पीवै 

दरि सचै सबदु वजावणिआ ॥


श्री गुरु अमरदास जी

श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 113

अम्रितु वरसै सहजि सुभाए ॥

गुरमुखि विरला कोई जनु पाए ॥

अम्रितु पी सदा त्रिपतासे

करि किरपा त्रिसना बुझावणिआ ॥


श्री गुरु अमरदास जी
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 119

रे मन मेरे भरमु न कीजै ॥

मनि मानिऐ अम्रित रसु पीजै ॥



श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 153

(Nanak Leela, Part 1)

गुरु नानक दाता बख़्श लै, बाबा नानक बख़्श लै।


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