हर दो आलम कीमते (पीर बुद्धूशाह)



जंग शुरू है, पीर बुद्धूशाह अपने पुत्रों और अनुयाइयों के साथ गुरु साहिब के चरणों में आ गए हैं। जंग लड़ी जा रही है। जंग में पीर साहिब के पुत्र व कई अनुयायी शहीद हो गए हैं। युद्ध में विजय होने के बाद पीर बुद्धूशाह, दशमेश पिता के पास बैठे हैं।
दशमेश पिता पावन कंघा करते हुए पीर साहिब से पूछ रहे हैं- क्या चाहते हैं? 
ईश्वरीय प्यार में डूबे पीर बुद्धूशाह पूरे भावयोग से दशमेश पिता के दर्शन कर रहे हैं। वे देख रहे हैं कि कंघा करते समय दशमेश पिताजी कितने प्रिय लग रहे हैं? उस ईश्वरीय दर्शन पर पीर साहब वारी-वारी (कुर्बान) जा रहे हैं। इस अहोभाव में डूबे हैं कि सच्चे पातशाह के चरणों में मेरे पुत्र एवं अनुयायी शहीद हो गए हैं। वे इस बात से प्रसन्न हैं कि इस प्रिय गुरु की खातिर मेरे पुत्र और अनुयायी शहीद हुए हैं। वे इसी मनोभाव में ‘बलिहार’ जा रहे हैं, सदके जा रहे हैं।

फिर सच्चे पातशाह पूछ रहे हैं - पीर साहिब, क्या बक्शीश की जाए? 
हाथ जोड़कर पीर साहिब विनती करते हैं, हार्दिक निवेदन करते हैं - 
सच्चे पातशाह जिस कंघे को दाहिने हाथ में पकड़े हुए हैं, उस कंघे में आपके कुछ पावन बाल भी हैं, गरीब निवाज ! वही बक्श दीजिए। 
पीर साहिब की ओर देखते हुए, उनकी उस निष्ठा व प्यार को देखते हुए दशमेश पिता सहज प्रसन्नता से भर उठे हैं। 
भाई नंद लाल जी फ़रमाते हैं-
दीन दुनीआ दर कमंदे आं परी रुखसारि मा 
हर दो आलम कीमते यक तारि मूए यारि मा
हर दो आलम, ये दीन दुनिया, ये दोनों आलम मेरे उस प्यारे सतिगुरु गुरु गोबिंद सिंह साहिब के एक पावन बाल की कीमत भी नहीं चुका सकते। एक बाल के बराबर भी नहीं हैं। 

देखिए पीर साहिब किस तरह के प्यार के खेल, खेल रहे हैं। वे गुरु गोबिंद जी के साथ किस तरह का प्यार रच रहे हैं। 
साधसंगत जी, हम भी अपने भीतर झाँक कर देख लें कि सच्चे पातशाह पर अपना सब कुछ कुर्बान करके उन पर वार कर, पीर साहिब उन पर बलिहारी जा रहे हैं और इसी चीज पर खुश हो रहे हैं। यह सब कुछ उन्होंने गुरु के चरणों में अर्पित कर दिया और इस प्रेम के बदले में उन्होंने लिया क्या?
हर दो आलम कीमते यक तारि मूए यारि मा

 ये दोनों आलम उस दिव्य-पावन बाल की कीमत के बराबर भी नहीं हैं। 

धन्य हैं गुरु गोबिंद साहिब, जिन्होंने ऐसे प्रेम की बक्शीश उस पीर के ऊपर की हुई है। हम भी उस प्रेम के खेल को याद करके अपने दशमेश पिता के चरणों में हाजरी लगवाने की कोशिश करें। उनके उस प्रेम में शामिल होने की कोशिश करें। सच्चे पातशाह से प्रेम की भीख माँगे। साहिब ने उस प्रेम पर मोहर लगाकर फ़रमाया है-
साच कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ
हम दशमेश पिताजी के साथ प्यार करने की कोशिश करें। प्यार के उन प्रतिमानों को समझें, जिनको स्थापित करने वाले पीर साहिब के बारे में हम पढ़ चुके हैं।
गुरु नानक ते गुरु ग्रंथ दा शिंगार गुरु गोबिंद सिंह जी। 
दाते दीआं दातां वंड गये दातार गुरु गोबिंद सिंह जी।
सीस दिया तेरे चरनां तों सौ वार गुरु गोबिंद सिंह जी। 
तां वी नहीं तेरा लह सकदा उपकार गुरु गोबिंद सिंह जी।

गुरु नानक दाता बख्श लै, बाबा नानक दाता बख्श लै।  


 


Comments