एवडु ऊचा होवै कोई
एवडु ऊचा होवै कोई
(इतना ऊँचा होवे कोई)
बाबा नंद सिंह साहिब एक पवित्र साखी सुना रहे हैं।
गुरु नानक पातशाह संगत में विराजमान हैं, वे अब एक लीला दिखाना चाह रहे हैं, उनके दाएँ हाथ में एक टका मसूली (सिक्का) है, उसे वे कभी बाएँ हाथ में लेते हैं कभी दाएँ हाथ में।
फिर संगत को दिखाकर पूछते हैं - हमारे हाथ में क्या है?
साध्-संगत जवाब देती है- सच्चे पातशाह! आपके हाथ में टका मसूली है।
भाई लहणा जी चुप बैठे हैं।
उनकी ओर देखकर गुरु नानक पातशाह पूछते हैं कि आप बताइए- हमारी मुटठी में क्या है?
इस पर भी भाई लहणा जी चुप हैं।
उन्होंने अपने टका मसूली को हाथ में दिखाकर लहणा जी से फिर पूछा- बताइए हमारी मुट्ठी में क्या है?
भाई लहणा जी यानी गुरु अगंद साहिब जवाब दे रहे हैं, उसे बाबा नंद सिंह साहिब इस तरह बता रहे हैं।
गुरु अगंद साहिब बोले-
सच्चे पातशाह, राजा की मुटठी में राजा का राज होता है, आपकी मुटठी में क्या है, मेरी क्या मजाल जो मैं आपको बता सकूँ? सच्चे पातशाह! हे दीन दुनिया के रक्षक, हे सच्चखंड के मालिक, आपकी मुटठी में तीनों लोको का राज है। आपकी मुटठी में दरगाह की सारी बरकतें हैं, सच्चखंड की सारी बरकतें हैं, आप जिसको जो चाहो बख़्श सकते हो।
गुरु नानक पातशाह को उन्होंने पहचान लिया है।
एवडु ऊचा होवै कोइ।।
तिसु ऊचे कउ जाणै सोइ।।
श्री गुरु नानक देव जी
गुरु नानक निरंकार की बख़्शीश है उस कृपा दृष्टि के साथ उसको उन्होंने पहचान लिया है। उस निरंकार दृष्टि से निरंकार भावना बोल रही है-ध्न्न ध्न्न गुरु नानक, ध्न्न ध्न्न गुरु नानक।।
तूं ही निरंकार, एक तूं ही निरंकार।।
गुरु नानक दाता बख्श लै,
बाबा नानक बख्श लै।
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