जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इह बिरदु सुआमी संदा॥
239 वर्षों की प्रत्यक्ष निरंकार की प्रेमलीला को निरंकार (गुरु गोबिंद सिंह साहिब) ने स्वयं ही सम्पन्न किया है।
साधसंगत जी, आइए, हम थोड़ा सोचें, विचार करें।
आपने पढ़ा है कि निरंकार ने सतत 239 वर्षों में प्रत्यक्ष प्रेम लीला रची है। यह प्रेमलीला गुरु नानक पातशाह के अवतरण वर्ष 1469 से लेकर 1708 ईस्वी तक पूर्ण होती है। 239 वर्षों से चली आ रही यह प्रेम लीला गुरु गोबिंद सिंह साहिब सम्पन्न कर रहे हैं।
अब हम थोड़ा-सा विचार करें कि गुरु हरिकृष्ण साहिब मात्र 2.5 वर्ष तक गुरु नानक जी की गद्दी पर विराजमान रहे।गुरु तेग बहादुर साहिब 11 वर्ष तक और गुरु गोबिंद सिंह साहिब 33 वर्ष पर्यंत गुरु नानक जी की गद्दी पर विराजित रहे। प्रेम लीला के इस खेल का वर्तन 46.5 वर्ष तक होता रहा है। वह प्रेमलीला जो श्री गुरु नानक निरंकार ने प्रारम्भ की थी, वह अब समापन की ओर थी।
इस संसार में हम सभी कर्म के बंधन में बंधे आते हैं, साहिब प्रेम बंधन में आते हैं।
वे कर्म बंधन में बंधे जीवों को मुक्त करने के लिए अवतरित होते हैं।
गुरु हरिकृष्ण साहिब जिस समय दिल्ली में पधारे तो उनकी आयु मात्र 8 वर्ष की थी।
दिल्ली में उस समय व्यापक स्तर पर बीमारी फैली है, लोग मृत्यु का ग्रास हो रहे हैं, पर जो भी गुरु साहिब की शरण में आ जाता है उसकी जीवन रक्षा हो जाती है।
देखिए, 8वें गुरु नानक क्या कह रहे हैं?
आओ, सभी मेरे पास आ जाओ, आप सबका दुःख मुझे अपने ऊपर लेना है। अपना दुःख आप मुझे दे दो।
जो सरणि आवै तिसु कंठि लावै इह बिरदु सुआमी संदा॥
श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग-544
वे शरण में आए हुए को कह रहे हैं-
आप गुरु नानक की शरण में आए हैं।आपका दुःख मैं अपने ऊपर लेता हूँ।अपना सारा दुःख मुझे दे दो।
गुुरु तेग बहादुर साहिब विराजमान हैं। अत्याचारों से पीड़ित पाँच सौ कश्मीरी पंडित, पंडित कृपा राम जी की अगुवाई में गुुरु साहिब की शरण में पहुँचे हैं और अपनी व्यथा का वर्णन करते हुए उनकी आँखों से निरन्तर आँसू बह रहे है, उस समय गुुरु तेग बहादुर फ़रमा रहे हैं-
आप गुरु नानक के द्वार पर आए हैं, अपना सारा दुःख मुझे देकर आप निश्चिंत हो जाओ।
साधसंगत जी, ज़रा सोच कर देखें, गुरु साहिब ने कैसी लीला की है?
उनके सुपुत्र गुरु गोबिन्द सिंह साहिब वहीं उपस्थित हैं। उनकी आयु मात्र 9 वर्ष की है। कश्मीरी पंडितों की व्यथा सुनकर गुुरु तेग बहादुर साहिब ने फ़रमाया-
इस समय एक महापुरुष के बलिदान की आवश्यकता है।
किस बलिदान की?
इन पीड़ितों और दुखियों के दुःखों को अपने ऊपर लेने का बलिदान। इस समय धर्म रक्षा हेतु बलिदान की आवश्यकता है।
यह सब जानकर दशमेश पिताजी फ़रमाते हैं-
सच्चे पातशाह, आपसे बड़ा भी कोई महापुरुष हो सकता है क्या?
साध संगत जी, उस समय गुरु तेग बहादुर साहिब ने गुरु गोबिंद सिंह साहिब की ओर देखा और फ़रमाया कि-
सृष्टि-समाज के दुख अपने उपर लेने के लिए केवल हम ही नहीं आये हैं, हमारा पुत्र (गुरु गोबिन्द सिंह साहिब) भी मनुष्यता के दुख अपने उपर लेने के लिए आया है।
कभी हमने सोचा है कि दशमेश पिताजी इस प्रेम के खेल में अपना सर्वस्व न्यौछावर करते जा रहे हैं, ऐसे में दमदमा साहिब में जब माता जी उनसे पूछती हैं कि साहिबज़ादे कहाँ हैं? उस समय क्या अद्भुत वचन फ़रमाते हैं-
चार मुए तो किआ भया जीवित कई हजार।।
उस समय बीस हज़ार की संगत जुटी हुई है।
गुरु गोबिंद सिंह साहिब संगत की ओर देखते हुए फ़रमाते हैं-
ये सभी मेरे साहिबज़ादे हैं। मैंने इन की खातिर अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया है ताकि ये सूखपूर्वक जी सकें।
साधसंगत जी, एक बात हमें ध्यान में रखनी चाहिए कि जब यह कहा जाता है-
वे कौन से सतिगुरु हैं जिसने किसी के गुण-अवगुण नहीं विचारे।
कौड़ा राक्षस जैसा हत्यारा भी सामने आया तो उस पर कृपा-करुणा कर उसे क्षण भर में देवता बना दिया। क्या उन्होंने किसी के भी पाप-कर्मों पर विचार किया?
गुरु हरिव्रिफशन साहिब ने किसी के पापों और अवगुणों को नहीं चितारा।
गुुरु तेग बहादुर साहिब भी किसी के गुण-अवगुण का विचार किये बिना सभी के कष्ट अपने ऊपर ले रहे हैं।
हम जिनकी (गुरु गोबिन्द सिंह साहिब) शरण में बैठे हैं आईए उनके अवतरण की त्रिशताब्दी के इस पुण्य अवसर पर उन्हें अश्रुपूर्ण भावाजंलि अर्पित करें।
तिन सौ साल होए गुरु नानक ने इक नवां ही चोज़ दिखाइआ ए।
सरबंस दे फुल्लां दी सेज ते गुरु ग्रंथ दा आसण लाइआ ए।
धंन धंन गुरु गोबिन्द सिंह जी निराला इश्क निभाइआ ए।
वाह वाह गुरु गोबिन्द सिंह जी।धंन धंन गुरु गोबिन्द सिंह जी।सरबंस दे पुुफंला दी सेज तेगुरु ग्रंथ दा आसण लाइआ ए।
नीत नवां नीत नवां साहिब मेरा नीत नवां।
साहिबु मेरा नीत नवां सदा सदा दातारु।।
इक नवां ही चोज़ दिखाइआ ए, इक नवां ही रंग चढ़ाइआ ए।इक नवां ही खेड रचाइआ ए, इक नवां ही रूप सजाइआ ए।
सरबंस दे फलां दी सेज ते गुरु ग्रंथ दा आसण लाइआ ए।
गुरु नानक दाता बख़्श लै।।
बाबा नानक बख़्श लै।
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