गुरु के चरण रिदै लै धारउ




गुरु के चरण हृदय में धारण करो। 

पिता जी इस संदर्भ में एक साखी सुनाया करते थे-

एक बार राधा जी तीर्थयात्रा करते हुए द्वारिका पहुँचीं। भगवान श्रीकृष्ण की रमणियों को जब यह खबर पहुँची कि राधा जी तीर्थ-यात्रा करते हुए यहाँ आई हुई हैं तो उन्होंने उनके गोबिन्द प्रेम की परीक्षा लेने के लिए एक युक्ति सोची। 

रानियों ने राधा जी को पीने के लिए उबलते हुए दूध का एक गिलास भर कर उन्हें पेश किया। जब राधा जी को यह पता लगा कि दूध का गिलास स्वयं उनके प्रिय भगवान श्रीकृष्ण की रानी पेश कर रही हैं तो उन्होंने प्यार और सम्मान के साथ गिलास के उस उबलते हुए दूध को पी लिया। 

रात्रि के समय जब भगवान कृष्ण विश्राम करने लगे तो रानियाँ उनके चरण दबाने लगीं। जैसे ही उन्होंने चरण स्पर्श किए तो देखा कि भगवान के श्रीचरण तो छालों से भरे हुए हैं। 

अपने हाथ पीछे खींचते हुए विनम्रतापूर्वक उन्होंने पूछा- महाराज, यह कैसा कौतुक है? 

भगवान श्रीकृष्ण ने फ़रमाया- आपको पता है कि हमारे चरण स्थायी रूप से कहाँ निवास करते हैं? आप ने जिस राधा को उबलता हुआ दूध पिलाया है, उसी राधा के हृदय में ये चरण बसे हुए हैं। आप के द्वारा दिए गए उबलते हुए दूध को जब राधा ने पिया तो वह सारा गरम दूध मेरे चरणों पर आ गिरा। सो, यह सारी मेहरबानी तो आप की ही है।

गुरु के चरण रिदै लै धारउ।
गुरु पारब्रहमु सदा नमसकारउ।।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 864


जिस सिक्ख ने अपने नेत्रों को गुरु-चरणों का वास बना लिया हो, जिनके नेत्रोंं में गुरु-चरण बसते हों, वे नेत्र पूजनीय हैं। 
जिथे बाबा पैर धरे, पूजा आसण थापण सोआ।

ऐसे नेत्रों वाला मनुष्य, ऐसे नेत्रों वाला सिक्ख चरणों की ज्योति से प्रकाशित एक मंदिर है। वह जिसे भी देखता है, उसके भाग्य जाग उठते हैं। उसकी नज़र में गुरु-चरणों के प्रकाश का जादुई असर होता है।


हे मेरे प्यारे गुरु नानक, इन आँखों की ज्योति बुझने से पहले तेरे दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हो जाए।
-बाबा नरिन्दर सिंह जी

गुरु नानक दाता बख्श  लै, 

बाबा नानक बख्श लै।

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