दरगाही भोजन


श्री गुरु अर्जुन साहिब मुक्ति का मार्ग इस प्रकार दर्शाते हैं-

थाल विचि तिंनि वसतू पईओ
सतु संतोखु वीचारो।।
अम्रित नामु ठाकुर का पइओ
जिस का सभसु अधारो।।
जे को खावै जे को भुंचै तिस का होइ उधारो।
एह वसतु तजी नह जाई नित नित रखु उरि धारो।।
तम संसारु चरण लगि तरीऐ सभु नानक ब्रहम पसारो।
-श्री गुरु ग्रन्थ साहिब, अंग 1429
इस पवित्र थाल (पवित्र श्री गुरु ग्रन्थ साहिब) में तीन पवित्र वस्तुएँ सत्य, संतोष और सद्विचार रखी हुई है।

 

अमृत स्वरूप परमात्मा के नाम को सबसे ऊपर रखा गया है, क्योंकि यह सभी का आश्रय है।
(पवित्र थाल में रखे) इस भोजन को खाने वाला संसार से पार उतर जाता है।

यह पवित्र भोजन बहुमूल्य है। इसका त्याग नहीं किया जा सकता। इस (भाव) को हमेशा हृदय में स्थान देना चाहिए।

परमात्मा के पवित्र चरणों का सहारा लेकर हम इस भवसागर से पार हो सकते हैं।

श्री गुरु ग्रन्थ साहिब का सच्चा प्रेमी हमेशा ही नाम की खुमारी, शाश्वत सत्य, संतोष और ईश्वरीय ज्ञान के रंग में रंगा रहता है।

नाम, मन को तृप्त करता है। नाम आनंद प्रदान करता है। आनंद प्राप्ति एक दुर्लभ ईश्वरीय कृपा है। पवित्र गुरबाणी में पवित्र नाम के द्वारा निरन्तर शाश्वत आनंद की बख़्शिश जिन पर होती रहती है, उनको दुनिया-भर की दौलत और राजपाट भी व्यर्थ प्रतीत होने लगता है।


श्री गुरु अर्जुन साहिब जी के इस पवित्र-शाश्वत भोजन को ग्रहण करने वाला संसार के लिए स्वयं वरदान स्वरूप हो जाता है। इस पवित्र आहार को प्राप्त करने वाला अपने चारों ओर शांति प्रसारित करने लगता है और उसका चेहरा भी प्रकाशमान हो उठता है।

इस प्रकार जो इस दिव्य भोजन को प्राप्त कर लेते हैं, वे दूसरों के लिए वरदान रूप होते हैं।
 
यदि अढ़सठ तीर्थस्थलों की पवित्र यात्रा भी की जाए तो उससे मिलने वाला फल भी इस के सामने तुच्छ होगा।

आओ, हम सभी श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी के चरण-कमलों का आश्रय लें और नाम रूपी अमृत का पान करें। यही शाश्वत सत्य, शाश्वत आनंद और ब्रह्मज्ञान का अमृत है जो कि गुरु अर्जुन साहिब जी के पवित्र कर-कमलों के द्वारा प्राप्त होता है। गुरबाणी शाश्वत आनंद प्रदान करती है और यह आनंद कभी भी निस्तेज नहीं होता।

गुरु नानक दाता बख्श  लै, 

बाबा नानक बख्श लै।

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