परमात्मा का आहार




परमात्मा ही हमारा दाता है। वह सभी जीवों को आहार देता है,

पर उसका अपना आहार तो ‘प्रेम’ है। 

भगवान राम श्रद्धालु भीलनी के झूठे बेरों का स्वाद लेते हैं। 

भगवान कृष्ण दुर्योधन के महलों के बढ़िया व स्वादिष्ट भोजन को ठुकराकर गरीब विदुर के कुटीर में सादे (घी मसालों से रहित) साग का आनन्द लेते हैं। 

श्री गुरु नानक साहिब मलिक भागो के शाही भोजन को त्याग कर भाई लालो के कोधरे (क्षुद्र अन्न) की रोटी बहुत ही प्रेम से खाते हैं। परमात्मा को पदार्थों की भूख नहीं, सचमुच में वह तो केवल प्रेम का ही भूखा है।

पवित्रता के सागर अति पावन सतिगुरु के लिए एक अशुद्ध और मलिन मन न तो प्रसाद तैयार कर सकता है और न ही उसे भेंट कर सकता है।

गुरु नानक दाता बख्श  लै,

बाबा नानक बख्श लै।


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